कोटा. भारत विकास परिषद चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र के हार्ट सर्जन डॉ. सौरभ शर्मा ने दो साल की बच्ची की अतिदुर्लभ हार्ट सर्जरी है। इस अतिदुर्लभ केस में बच्ची के जन्म से ही दोनों धमनियां आपस में मिली हुई थी और हार्ट से निकलने वाली सभी नसें उल्टी-पुल्टी लगी हुई थी।
जन्म से दोनों धमनियां मिली हुई थीं और सभी नसें उल्टी-पुल्टी लगी हुई थींकोटा. भारत विकास परिषद चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र के हार्ट सर्जन डॉ. सौरभ शर्मा ने दो साल की बच्ची की अतिदुर्लभ हार्ट सर्जरी है। इस अतिदुर्लभ केस में बच्ची के जन्म से ही दोनों धमनियां आपस में मिली हुई थी और हार्ट से निकलने वाली सभी नसें उल्टी-पुल्टी लगी हुई थी। डॉ. शर्मा ने बताया कि टोंक निवासी ओव्या दो साल की आठ किलो वजनी बच्ची की हालत इतनी खराब थी कि उसके पिता ने उसे जयपुर समेत अन्य शहरों में भी हार्ट स्पेशलिस्ट को दिखाया, पर सभी ने बच्ची की हालत काफी नाजुक बताते हुए ऑपेरशन में जान जाने का रिस्क बताया।
सामान्य तौर पर हार्ट से दो महाधमनी एओट्रा और पल्मोनरी निकलती है, एक पूरे शरीर को और दूसरी फेफड़ों को खून देती है। इस बच्ची के दोनों महाधमनियों ने ह्रदय से दो या तीन मिलीमीटर निकलने के बाद दोनों ने आपस में जुड़कर कॉमन चेम्बर बना लिया। मतलब दोनों आपस में जुड़ी हुई थी, जबकि सामान्य तौर पर दोनों अलग-अलग होती हैं। उसके बाद राइट साइड के एओट्रा में से राइट की फेफड़ों की धमनी व लेफ्ट की फेफड़े की धमनी पल्मोनरी आर्टरी से निकल रही थी। एओट्रा भी आधा बनकर बीच में ही रूक गया था, शेष पूरे शरीर को खून देने वाला एओर्टा को फेफड़े की नस बना रही थी। मतलब कि सबकुछ ही उल्टा-पुल्टा चल रहा था। जिसकी वजह से बच्ची के शरीर का वजन दो साल की होने के बाद भी मात्र ८ किलो ही था और उसकी कंडीशन भी काफी खराब हो चुकी थी। इस ऑपरेशन में दोनों महाधमनियां और दोनों के कनेक्शन बिल्कुल सही जोडऩे का काफी जटिल काम किया है। बच्ची की हालत अब पूरी तरह ठीक है। सर्जरी करने वाली टीम में कार्डियक एनेस्थेटिक डॉ. सनी केसवानी, डॉ. प्रभा खत्री, डॉ. महेश, सीनियर परफ्यूजनिस्ट प्रमोद कुमार, फिजिकल असिस्टेंट ललित कुमार, स्क्रब नर्स अर्पित जैन, एनेस्थिसिया टेक्निशियन सागर पवार, आईसीयू इंचार्ज नाजिश मिर्जा आदि शामिल थे।
आठ घंटे तक चला ऑपरेशन, दो दिनों तक घर नहीं गये
>डॉ. सौरभ शर्मा ने बताया कि ऑपरेशन काफी जटिल था, इसलिए आठ घंटे तक ऑपरेशन चला। इसमें बच्ची के हार्ट की झिल्ली से फेफड़े की महाधमनियां विकसित की और कृत्रिम झिल्ली से महाधमनी बनाई। इसके बाद हार्ट से निकलने वाली सभी नसों को उन दोनों महाधमनियों को जोड़ा। उन्होंने बताया कि इतने बड़े जटिल और अतिदुर्लभ केस को सफलतापूर्वक ऑपरेट करने से मन काफी उत्साहित और खुश था, लेकिन बच्ची के होश आने तक उसकी देखभाल के लिए दो दिनों तक घर नहीं जाकर अस्पताल में ही रूक रहे। ताकि कोई भी दिक्कत आए तो बच्ची को तुरंत देख सकें।
महीने में २१ दिन बीमार रहती थी
जब बच्ची की सीटी स्केन कराई तो स्थिति वाकई बहुत खराब थी। पिता ने यह कहते हुए ऑपरेशन के लिए आग्रह किया कि बच्ची महीने के तीस दिनों में से २१ दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहती है, बच्ची के पिता के आग्रह पर डॉक्टर ने ऑपरेशन का जोखिम उठाया।