एनीमिया क्या है ?
 मानव की रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन ऑक्सीज़न को प्रत्येक कोशिका तक ले जाता है, ताकि कोशिकाएं अपना कार्य सुचारु रूप से कर सके। हीमोग्लोबिन आयरन तथा प्रोटीन से मिलकर बनता है। किन्हीं कारणों से यदि शरीर में आयरन तथा प्रोटीन कम हो जाता है तो हीमोग्लोबिन की कमी हो जाने से व्यक्ति एनीमिक हो जाता है। लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या या उनकी ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपर्याप्त हो जाती है, जो उम्र, लिंग, ऊंचाई, धूम्रपान और गर्भावस्था की स्थिति के अनुसार भिन्न होती है। अन्य स्थितियां, जैसे फोलेट, विटामिन बी 12 और विटामिन ए की कमी, पुरानी सूजन, परजीवी संक्रमण और वंशानुगत विकार सभी एनीमिया का कारण बन सकते हैं। इसके लक्षणों में थकान, सांस लेने में तकलीफ और त्वचा का पीलापन इत्यादि सम्मिलित  हैं। एनीमिया से पीड़ित महिलाओं में ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता कम हो जाने से सदमा लगने की आशंका अधिक होती है।

दुनिया भर में, प्रजनन आयु की आधा अरब से अधिक महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। प्रतिवर्ष लगभग 70,000 प्रसवोत्तर मौतें होती हैं, ज्यादातर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में। भारत में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार छह समूहों में एनीमिया की व्यापकता पुरुषों (15-49 वर्ष) में 25.0% और महिलाओं (15-49 वर्ष) में 57.0%, किशोर लड़कों में 31.1% है।   15-19 वर्ष), किशोर लड़कियों में 59.1%, गर्भवती महिलाओं (15-49 वर्ष) में 52.2% और बच्चों (6-59 महीने) में 67.1% पायी गई है। 

एनीमिया से हानियां 
महिलाओं के परीक्षणों के विश्लेषण में पाया गया है कि एनीमिया से पीड़ित महिलाओं में  प्रसवोत्तर रक्तस्राव (पीपीएच) की सम्भावना अत्यंत तीव्र हो जाती है। पीपीएच बच्चे के जन्म के बाद योनि से होने वाला गंभीर रक्तस्राव है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार एनिमिक महिला को प्रसवोत्तर रक्तस्राव कम से कम 500 एम.एल. तक हो जाने से एक गंभीर स्थिति निर्मित हो जाती  है जिससे महिला की मृत्यु भी हो सकती है। प्रसवोत्तर रक्तस्राव के अन्य लक्षणों में चक्कर आना, बेहोशी महसूस होना और धुंधली दृष्टि आदि है मध्यम एनीमिया की तुलना में गंभीर एनीमिया में मृत्यु होने की संभावना सात गुना अधिक होती है।

जब महिला में रक्ताल्पता होती है तो गर्भ में संतान को पोषण पर्याप्त नहीं मिल पाता है, एवं प्रसव के पश्चात् अत्यधिक रक्तस्त्राव हो जाने के कारण माता की कमजोरी के कारण स्तनपान की भी समस्या होती है अतः ऐसी स्थिति में नवजात शिशु को पोषण कम मिल पाने के कारण संतान भी कमजोर होती है अर्थात भारत की भावी पीढ़ी क्षीण एवं कमजोर होने की स्थिति निर्मित होती है।     

उपचार 
पीपीएच को कम करने के लिए कुछ दवाओं जैसे ऑक्सीटोसिन, ओरल मिसोप्रोस्टोल दवा आदि का उपयोग करने की अनुशंसा की जाती है। ऑक्सीटोसिन गर्भाशय के संकुचन को उत्तेजित करने और अत्यधिक रक्तस्राव के जोखिम को कम करने के लिए आमतौर पर अनुशंसित दवा है। 

भोजन
आयरन युक्त पदार्थ जैसे: गुड़, हरी पत्तेदार  सब्जियां, खजूर, किशमिश, चुकंदर, पपीता, अमरुद,  अंगूर, सेब इत्यादि तथा प्रोटीन युक्त पदार्थ जैसे : सोयाबीन, चना,अंकुरित आहार,दालें,दूध, अंडा इत्यादि।   

गर्भावस्था में मां को पौष्टिक आहार देना चाहिए।  शिशु को प्रथम 6 माह तक केवल मां का दूध ही देना चाहिए। 

“एनीमिया मुक्त भारत” एवं भारत विकास परिषद 
भारत विकास परिषद की शाखाएं पूरे देश में इस अभियान को अत्यंत गंभीरता से गति प्रदान कर रही है एवं अनेक शाखाओं में प्रत्येक माह एनीमिया परीक्षण शिविर लगाकर पीड़ित रोगियों को आवश्यक दवाइयां, पोषण सामग्री, लोहे की कढ़ाई एवं गुड़-चने के वितरण के कार्यक्रम व्यापक स्तर पर कर रही है। अनेक शाखाओं द्वारा फॉलो-अप शिविर भी आयोजित किए जा रहे हैं, जिससे यह पता लग सके कि परिषद के प्रयासों से कितने रोगी एनीमिया से रोग मुक्त हुए हैं। पूरे देश में ऐसे शिविरों की संख्या हजारों में है एवं लाभार्थियों की संख्या लाखों में है। भारत विकास परिषद भारत सरकार के इस “एनीमिया मुक्त भारत” अभियान में कंधे से कंधा मिलाकर अपनी पूर्ण क्षमता अनुसार संलग्न है।