Rashtriya Chetna Ke Swar - राष्ट्रीय चेतना के स्वर

जयत्वियं वसुन्धरा


जयत्वियं वसुन्धरा जयत्वियं वसुन्धरा। 
रघोरियं यदोरियं कुरोरियं वसुन्धरा॥

अनन्तलोकतोऽपि शान्तिदायिनी गरीयसी।
पुरन्दरस्य वज्रतोऽपि पुष्कलं दृढीयसी॥
वयं यदीयरक्षणे निरन्तरं पुरस्सरा:।
तुषारशैलमाण्डिता जयत्वियं वसुन्धरा॥ १॥

न हिन्दवो महामदा न नानकावलम्बिन:।
न शाक्तशैवतान्तिका न जैनबौद्धयोगिन:॥
परस्परं पृथङ्मता न वर्ततेऽन्यथा धरा।
ऋतम्भरा सनातनी जयत्वियं वसुन्धरा॥ २॥

मुखे जयध्वनिस्तथा करे त्रिवर्णकध्वज:।
पदद्वये दृढा गर्तिगले विचञ्चलस्रज:॥
वयं प्रभञ्जनोपमा अरातिरोधतत्परा:।
शकारिशौर्यरक्षिता जयत्वियं वसुन्धरा॥ ३॥

न दुर्नयं सहामहे न दुर्नयो विचीयते।
स्वराष्ट्रगौरवोचितं हि केवलं विद्यीयते॥
वयं प्रयाणगत्वरा: प्रतिक्षणं प्रसृत्वरा।
सुरैरपि प्रभाविता जयत्वियं वसुन्धरा॥ ४॥

वयं हि लोकतान्त्रिका ऋतैकपक्षपातिन:।
सुहृत्तमा: परन्तु वैरिणां कृतेऽतितापिन:॥
न भेददर्शिनोवयं न चापि वृत्तमत्सरा:।
त्रिलोकतो महीयसी जयत्वियं वसुन्धरा॥ ५॥

-अभिराज डॉ. राजेन्द्र मिश्र