–  न्यायमूर्ति विष्णु सदाशिव कोकजे, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष
(दिल्ली:  प्रबुद्धजनों के बीच उद्बोधन के सम्पादित अंश)

विगत पचास वर्षों में सामाजिक परिस्थितियों में तेजी से परिवर्तन हुआ है। अनेक सामाजिक संस्थाओं एवं जीवन मूल्यों में ह्रास को आसानी से देखा जा सकता है। इन परिस्थितियों के कारण समाज के चिन्तकों ने सज्जनशक्ति के संगठन की आवश्यकता अनुभव की।  सज्जनशक्ति के अभाव अथवा उदासीनता के कारण अल्पसंख्यक हुई जनशक्ति  के समूह  सामाजिक  मान्यताओं  को  तोड़ने में आज  विशेष  रूप से  प्रभावी है। इसलिये  समाज  की  

 

सज्जनशक्ति को संगठित करने की आवश्यकता है। भारत विकास परिषद् अथवा अन्य सहयोगी कार्यों में सहायता कर हमें प्रबुद्ध चिन्तनशील एवं साधन सम्पन्न लोगों को संगठित करना होगा। इसके द्वारा ही भारत का सर्वांगीण विकास सम्भव है।

सामाजिक सुरक्षा एवं सामाजिक न्याय आज की मूलभूत आवश्यकता है। यह अपनी परिवार रचना के कारण स्वतः सुलभ रहता है। समाज में हमें अपने सुख दुख साझा करने का मौका रहता है। वर्तमान समय में असामयिक दुर्घटनाऐं, आत्महत्या आदि मनुष्य की हताशा का प्रतीक है। संयुक्त परिवार के प्रगाढ़ संबंधों के कारण सामाजिक सुरक्षा हमें स्वतः प्राप्त होती है। कुसंगति एवं कुविचारों के कारण उत्पन्न हुई हताशा के कारण किशोर आयु वर्ग में आत्म हत्या की वृति बढ़ती जा रही है। एकल महिला अथवा कार्यशील महिलाओं की सुरक्षा भी एक गम्भीर समस्या है। आर्थिक कारणों से परिवार से दूर रहकर महिलाओं को काम करना पड़ता है। ऐसे में महिला सुरक्षा एक गंभीर समस्या है। पुरानी संस्थाओं के टूटने और नई व्यवस्था का निर्माण न होने के कारण यह समस्या गंभीर हो गई है। वृद्धजनों की समस्या भी गम्भीर है। हमें समाज जीवन रचना के नये आयाम विकसित करने होंगे।

शिक्षा में कैरियर के प्रति झुकाव आर्थिक स्पर्धा का आकर्षण बढ़ा है। जाति व्यवस्था के द्वारा पंचायतों के माध्यम से समस्याओं का समाधान हो जाता है। आज धन के प्रभाव के कारण अनेक बुराईयाँ समाज में व्याप्त हो गई है। अतः इन संस्थाओं को पुनः विकसित करना होगा। बच्चों में टीवी, कार्टून देखने की वृति को रोकने की बात की जाती है। परन्तु बच्चों को क्या करना चाहिए इस विषय में मार्गदर्शन नहीं होता। खेल कूद में भाग लेने वाले बालक तुलनात्मक रूप से सहनशील समन्वयवादी एवं सकारात्मक वृति के होते हैं।

वरिष्ठ नागरिकों की समस्याऐं केवल आर्थिक ही नहीं है। उनके परिवार की आत्मीयता और स्नेह की अपेक्षा होती है। सरकारी संरक्षण एवं कानून होने के बावजूद भी कोई वृद्धजन अपने परिवार का अहित नहीं चाहता। विदेशी जगत में सभी कल्याणकारी योजनायें स्वास्थ्य, सुरक्षा और न्याय आदि सरकार का दायित्व होता हैं हमारे देश में परिवार और समाज के द्वारा समस्याओं का समाधान हो सकता है।

समाज के द्वारा बुद्धि, साधन एवं धन का समर्पण करने वाले सक्रिय नागरिकों को संगठित करने की आवश्यता है। समाज से हमें बहुत कुछ प्राप्त हुआ है। समाजिक दायित्व से मुक्त होने का भाव हमारे मन में है। हम चिन्तन करें। विचार करें। हम किस माध्यम से समाज के विकास में अपना योगदान कर सकते हैं। भारत विकास परिषद् हमें कुछ आयामों की ओर प्रेरित करती है। संस्कार और सेवा के क्षेत्र में हम प्रकल्पों का संचालन कर रहे हैं। आपके जीवन का अनुभव, साधन, समय समाज कार्य के लिये अपेक्षित है।

(Niti: Nov., 2015)