Praudh Sadhana
Praudh Sadhana / प्रौढ़ साधना
भारत एक विशाल राष्ट्र है। वर्तमान में इसकी जनसंख्या 125 करोड़ से भी ऊपर है। करोड़ों की इस भीड़ में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो अपनी जीविकोपार्जन हेतु किये जाने वाले कार्यकलापों तथा पारिवारिक दायित्व से मुक्त हो चुका है एवं इसी कारण अब उसके सम्मुख रचनात्मक कार्य करने का कोई क्षेत्र उपलब्ध नहीं है। अत: उसका अमूल्य समय और शक्ति व्यर्थ के अतीत चिंतन, भविष्य की दुश्चिताओं एवं परिवार के अन्य सदस्यों से उलझनों में व्यतीत होता है।
आज के परिवेश में अपने देश में एक सम्पन्न भारतीय सेवा निवृत्त होने के पश्चात् सामान्यत: 15 से 20 वर्षों तक जीवित रहने की आशा कर सकता है। इन वर्षों के प्रथम 10 वर्ष उसके लिए सृजनात्मक हो सकते हैं क्योंकि इस अवधि में व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ एवं मानसिक रूप से सचेत रहता है। इस के साथ ही विगत 4-5 दशकों के जीवन की अनमोल अनुभवशीलता की विपुल सम्पदा भी उसके पास होती है।
वर्तमान में अपने देश की सम्पूर्ण जनसंख्या का लगभग 7 प्रतिशत अर्थात् 8 करोड़ से अधिक लोग इसी वर्ग के हैं। इन 8 करोड़ लोगों में से यदि कुछ लाख लोगों की अद्वितीय ओजस्विता का उपयोग सामाजिक पुनर्जागरण तथा पुननिर्माण के लिए किया जा सके तो देश का बहुत बड़ा कल्याण हो सकता है।
भारतीय जीवन रचना
उल्लेखनीय है कि हमारी भारतीय जीवन रचना हमारे समाजशास्त्रियों तथा मनीषियों ने मानव के सम्पूर्ण जीवन अर्थात् जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक के काल पर गहन विचार किया था एवं उन्होंने उसकी जीवन यात्रा को 4 भागों में बांटा था जिन्हें आश्रम कहा जाता है। ये चार आश्रम हैं : ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। प्रत्येक आश्रम में व्यक्ति के कर्त्तव्यों तथा दायित्वों का निर्धारण भी उसके द्वारा किया गया था। कालांतर में यह व्यवस्था पूर्णत: ध्वस्त हो गई जिसके दुष्परिणाम हमें आज समाज में दिखाई पड़ रहे हैं। इस व्यवस्था को पुन: जीवित एवं प्रतिष्ठित करने का दायित्व समाज के चिन्तनशील प्रबुद्ध जनों के कंधों पर है।
इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु भारत विकास परिषद् के चिंतकों ने अपनी प्राचीन परम्परा को पुर्नजीवित एवं प्रतिष्ठित करने के लिए प्रौढ़ साधना योजना की संकल्पना करके अपने देश के करोड़ो सेवा निवृत्त बन्धुओं को पुन: अपनी प्राचीन वानप्रस्थी परम्परा को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया। इस दृष्टि से आरम्भ में “विकास समर्पित´´ नाम से योजना तैयार की गई जिसका वर्तमान में नाम बदलकर प्रौढ़ साधना योजना कर दिया गया है। इस योजना के अन्तर्गत सेवानिवृत्त प्रौढ़ बन्धुओं को अधिकाधिक संख्या में परिषद् की शाखाओं के साथ जोड़कर उनके ज्ञान, अनुभव, साधन-सम्पन्नता व समय का सदुपयोग परिषद् द्वारा संचालित अनेकों सेवा तथा संस्कार के कार्यक्रमों तथा प्रकल्पों में किया जाये, ऐसी सोच उभर कर आई। परिषद् की इस योजना के द्वारा परिषद् वानप्रस्थती बन्धुओं के व्यक्तित्व का विकास करना चाहती है।
इस योजना को विधिवत् 1993 में अमृतसर में आयोजित परिषद् के अखिल भारतीय अधिवेशन में प्रारम्भ किया गया था। उस समय की विभिन्न शाखाओं के 15 सदस्य इस योजना के अन्तर्गत कार्य करने हेतु आगे आये थे। उन्हें भारत माता मंदिर, हरिद्वार के स्वामी सत्यमित्रानन्द जी द्वारा आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। इस प्रकार धीरे-धीरे शाखाओं के माध्यम से इस योजना का करवां चलता रहा और काफिला बनता गया।
योजनांतर्गत प्रौढ़ बन्धु की परिभाषा
वैसे तो परिषद् के प्रत्येक सदस्य से अपेक्षित है कि वह परिषद् के माध्यम से अपने देश के विकास के लिए समर्पित रहे। किन्तु प्रौढ़ संस्कार योजना के अन्तर्गत चूंकि वानप्रस्थी व्यक्तित्व के विकास का एक विशेष अभियान चलाया गया है इसलिए प्रौढ़ बन्धुओं के लिए निम्न पांच प्रमुख बिन्दु निश्चित् किये गये हैं:
1. किसी सेवा, व्यवस्था अथवा रोजगार से सेवानिवृत्त हो गया हो अथवा होने वाला हो एवं 55 से 75 वर्ष के आयु वर्ग में हो।
2. पारिवारिक दायितवों से सामान्यत: मुक्त हो।
3. मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ हो।
4. आर्थिक रूप से स्वावलम्बी हो।
5. परिषद् द्वारा संचालित किसी प्रकल्प पर अथवा समाज में कोई सेवा कार्य करने की इच्छा-शक्ति तथा क्षमता रखता हो।
संस्कार शिविरों का आयोजन
देश के विभिन्न अंचलों में परिषद् की शाखाओं के साथ जुड़े प्रौढ़ बन्धुओं को समुचित मार्गदर्शन एवं प्रेरणा देने तथा उनमें सामूहिक चिन्तन-मनन, परस्पर विचार-विनिमय, सामाजिक जीवन की मधुरता एवं समरसता विकसित करने के उद्देश्य से संस्कार शिविरों का सिलसिला 1995 से आरम्भ किया गया। प्रथम शिविर मई 1995 में हरिद्वार में भारत माता के परिसर में आयोजित किया गया था। इस शिविर में 35 महिलाओं तथा पुरुषों ने भाग लिया था। कुछ आंचलिक शिविर भी लगाए गए थे।
इन शिविरों में प्रौढ़ बन्धुओं को परिषद् की कार्य पद्धति तथा कार्यक्रमों एवं प्रकल्पों की जानकारी के साथ-साथ देश की सम-सामयिक समस्याओं पर विस्तार से चिन्तन तथा सामूहिक चर्चा का अवसर प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त भारतीय संस्कृति, भारतीय जीवन दर्शन तथा अनेक आध्यात्मिक विषयों पर विद्वानों तथा सन्तों द्वारा मार्ग दर्शन दिया जाता है। प्रौढ़ जनों को आरोग्य पूर्ण जीवन व्यतीत करने का अभ्यास कराने हेतु भी प्राकृतिक चिकित्सा, आहार-विहार के नियमों के साथ योगासन, प्राणायाम तथा ध्यान का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
उपरोक्त शिविरों के अतिरिक्त देश के कतिपय प्रमुख नगरों में प्रौढ़ बन्धुओं की एक दिवसीय बैठकों का आयोजन भी किया गया है।
नवीन चिन्तन दिशा
प्रौढ़ साधना योजना का अब तक जो स्वरूप उभर कर आया है वह अपने में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। अभी तक इस योजना के अन्तर्गत परिषद् की शाखाओं के साथ समाज के कुछ प्रौढ़ बन्धुओं को सम्बद्ध करते हुए उन्हें लोक निर्माण तथा लोक कल्याण के कार्य में प्रवृत्त करने का विचार किया गया है किन्तु चूँकि देश में करोड़ों की संख्या में प्रौढ़ आयु वर्ग के लोग विद्यमान है अतएव इस अजस्र जनशक्ति का सदुपयोग भी राष्ट्र निर्माण के कार्य के लिए जुटाने पर विचार किया गया है। इस योजना को प्रबल और व्यवस्थित आन्दोलन के रूप में संचालित किये जाने की योजना बनाई गई है। परिषद् की शाखाओं में जहाँ अच्छी संख्या में प्रौढ़ वर्ग के बन्धुओं को जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से शाखा से जोड़ना सम्भव नहीं हैं उन्हें किसी अन्य सार्थक नाम से संगठित कर उन्हें भी शिक्षा, चिकित्सा, पर्यावरण तथा सामाजिक उन्नयन आदि क्षेत्रों में लोक-निर्माण तथा लोक कल्याण के रचनात्मक कार्यों से जुड़ने हेतु प्रेरित किया जा रहा है।
भारतीय मान्यता के अनुसार जीवन के प्रत्येक भाग में संस्कारों की आवश्यकता है। बाल, युवा सभी को संस्कारित होना चाहिए। प्रौढ़ों को भी कुछ विशेष संस्कारों की आवश्यकता है। अत: प्रौढ़ संस्कार योजना में प्रौढ़ों के लिए तीन मूल मंत्र निर्धारित किये गये हैं जिनमें उनका जीवन संचालित होना चाहिए। वे मूल मंत्र हैं : एक सक्रिय जीवन एक सार्थक जीवन एवं एक सात्विक तथा सेवामय जीवन।
भारत कर्मभूमि है अत: हमारे जीवन का प्रत्येक भाग कर्ममय होना चाहिए। यह कर्म निरर्थक एवं लक्ष्यहीन नहीं होना चाहिए। इसकी कुछ सार्थकता होनी चाहिए। वह लक्ष्य भी सम्पदा, समृद्धि, प्रसिद्धि प्राप्त करना नहीं अपितु मानव सेवा एवं जीवन के अंतिम सत्य की खोज अर्थात् आत्म साक्षात्कार होना चाहिए।
जीवन के इस तृतीय प्रहर में व्यक्ति को आस्था और आशा रखते हुए अपने जीवन के इस भाग को गरिमामय एवं गौरवपूर्ण बनाना चाहिए। कहते हैं वयस्विता ही वह सर्वोत्तम सोपान है जिस पर आरूढ़ होकर व्यक्ति निश्चिन्त, निर्भय, आत्मनिर्भर एवं निरापद रह सकता है तथा संसार से कूच करते हुए उसे अपने कर्मों द्वारा अब से बेहतर हालत में छोड़ सकता है ताकि भावी संतति गर्व पूर्वक उसका पुण्य स्मरण कर सके।
Shivirs Held
This project aims at enabling retired persons to lead active, purposeful and dedicated social life. So far 19 All India and a number of Zonal Camps have been organised to motivate senior citizens to engage in social work. During the year 2016-17, 37 branches organised 136 Sanskar Shivirs wherein a total of 7,359 senior citizens participated.
All India Praudh Sadhna Shivirs
The participation in All India Praudh Sanskar camps has been as under:
S.No. | Place | Date | No. of Participants |
---|---|---|---|
1 | Haridwar | May, 1995 | 35 |
2 | Kanyakumari | February, 1996 | 55 |
3 | Haridwar | October, 1996 | 60 |
4 | Ujjain | February, 1997 | 75 |
5 | Kurukshetra | October, 1997 | 100 |
6 | Dharamshala | March, 1998 | 100 |
7 | Ayodhya | November, 1998 | 180 |
8 | Nashik | March, 2000 | 225 |
9 | Chitrakoot | April, 2001 | 300 |
10 | Puri | March, 2002 | 275 |
11 | Pushpgiri | February, 2003 | 160 |
12 | Tirupati | March, 2005 | 325 |
13 | Bodh Gaya | March, 2006 | 301 |
14 | Mysore | March, 2007 | 120 |
15 | Katra | Feb-March, 2008 | 251 |
16 | Haridwar | March, 2010 | 260 |
17 | Gwalior | March, 2011 | 164 |
18 | Goa | March, 2012 | 467 |
19 | Jhansi | March, 2013 | 210 |
20 | Jammu | February, 2014 | 370 |
21 | Annavaram | Feb-Mar, 2015 | 464 |
22 | Chittorgarh | March, 2016 | 400 |
Regional Praudh Sadhna Shivirs
During the year 2017-18, following two 2 Regional Praudh Sadhna Shivir were organized:
S.No. | Dates | Place | Participants |
1. | 3-4 February, 2018 | Ujjain (M.P. West) | 275 |
2. | 10-11 February, 2018 | Amritsar (Punjab North) | 481 |