Bharat Ko Jano Q&A – Hindi 07
राजे-महाराजे (ऐतिहासिक)
1. धनानन्द | सिकंदर के भारत आक्रमण के समय मगध के शासक। उसकी सेना इतनी विशाल तथा संगठित थी कि सिकंदर उस पर आक्रमण करने की हिम्मत न जुटा सका। किंतु चाणक्य के आह्वान पर भी इसने पश्चिम भारत के राजाओं की सिकंदर के विरूद्ध सहायता नहीं की। |
2. चन्द्रगुप्त मौर्य | राजा धनानन्द द्वारा अपमानित चाणक्य ने नंदवश का सर्वनाश करने का बीड़ा उठाया तथा अपने शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य को उसके विरूद्ध तैयार किया। नन्द को हरा कर चंद्रगुप्त मौर्य मगध का शक्तिशाली राजा बना और मगध से बाहर भी अपने राज्य का विस्तार किया। वर्तमान अफगानिस्तान क्षेत्र के यूनानी शासक सेल्यूकस को हरा कर उसकी पुत्री से विवाह किया। 322 ई. पूर्व. से 298 ई. पू. तक राज्य किया। इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी। |
3. बिन्दुसार | चंद्रगुप्त मौर्य का पुत्र। वह शान्तिप्रिय शासक था। जिसने अपने राज्य के विस्तार के लिए कोई युद्ध नहीं किया किंतु पिता द्वारा प्रदत्त राज्य का पूर्णतः संरक्षण किया। 298 ई. पूर्व. से लेकर 273 ई. पूर्व. तक राजा रहे। |
4. सम्राट अशोक | बिंदुसार का पुत्र, मौर्य वंश का सबसे विख्यात् राजा। भारत, अफगानिस्तान तथा बलूचिस्तान तक उसका राज्य था। कलिंग पर आक्रमण के दौरान हुए रक्तपात से उसे युद्ध से घृणा हो गई और आगे से कोई युद्ध न करने का निर्णय ले लिया। बौद्ध धर्म का अनुयायी होकर अपने पुत्र महेंद्र तथा पुत्री सिंघ मित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए विदेश भेजा। इसी कार्य के लिए पूरे भारत में विहार तथा स्तुपों का निर्माण कराया। ई. पू. 273 से ई. पू. 232 तक राज्य किया। इन्होंने पाटलिपुत्र को ही राजधानी बनाया। |
5. पुष्यमित्र | 185 ईसा पूर्व अंतिम मौर्य शासक ब्रहद्रथ को उस के सेनापति पुष्यमित्र ने मार डाला और स्वयं राजा बन बैठा। उसने शुंग वंश स्थापित किया। शुंग वंश का राज्य ई. पू. 185 से 73 ई. पूर्व. तक चला। |
6. वासुदेव | शुंग वंश के शासन को वासुदेव ने समाप्त किया तथा कण्व वंश की स्थापना की। |
7. कनिष्क | कुषाण वंशीय प्रतापी राजा जो सन् 78 ई. में भारत का शासक बना। उनका राज्य मध्य एशिया से विंध्य तक तथा बिहार से अफगानिस्तान तक फैला हुआ था। इन्होंने पुरूषपुर (पेशावर) को अपनी राजधानी बनाया। |
8. चन्द्रगुप्त प्रथम | सन् 320 ई. चन्द्रगुप्त प्रथम ने भारत में अपना राज्य स्थापित किया तथा गुप्त सामा्रज्य की स्थापना की। इसका राज्य वर्तमान उत्तर प्रदेश तथा बिहार तक विस्तृत था। |
9. समुद्रगुप्त | सन् 325 ई. से 375 ई. तक चंद्रगुप्त प्रथम के पुत्र समुद्र गुप्त ने शासन किया। उसने पूर्व में हुगली से यमुना, चम्बल तक तथा हिमालय से नर्मदा तक अपने राज्य का विस्तार किया। इसे भारत का नेपोलियन कहा जाता है। |
10. चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) | सन् 380 ई. से 413 ई. तक शासन रहा। गुप्त वंश का सर्वाधिक विकास उन्हीं के समय हुआ। इसने अपने राज्य का और विस्तार करते हुए गुजरात काठियावाड़ तथा उज्जैन को अपने राज्य में मिला लिया। कुतुब मीनार के पास लौह स्तंभ इन्हीं का बनवाया हुआ है। महाकवि कालिदास सहित 9 विद्वान नवरत्न के रूप में इनके दरबार में थे। इनके राज्य में कला, साहित्य, विज्ञान, स्थापत्य कला आदि अपने पूर्ण विकास पर थी। इसीलिए गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है। |
11. कुमारगुप्त | विक्रमादित्य का पुत्रं उनके बाद राजा बने। अपने पिता की विरासत को बखूबी बचाए रखा। |
12. स्कन्द गुप्त | कुमार गुप्त का पुत्र। इन्होंने भी अपने पूर्वजों द्वारा दिए गए राज्य का संरक्षण किया। गुप्त काल में ही नालंदा, तक्षशिला, उज्जैन तथा सारनाथ महत्त्वपूर्ण शिक्षण स्थल बने। |
13. हर्षवर्धन | सन् 606 से सन् 647 तक थानेश्वर तथा कन्नोज के राजा रहे। उसने अपना राज्य मालवा, बंगाल तथा असम तक बढ़ाया। दानी राजा के रूप में विख्यात्। चीनी यात्री हेनसांग इन्हीं के राज में भारत आया और इनकी प्रशंसा की। |
14. पुल्केशिन प्रथम | सन् 550 ई. दक्षिण भारत में चालुक्य वंश स्थापित किया। |
15. कीर्तिवर्मन | पुल्केशिन प्रथम का पुत्र। इसने अपने राज्य का और भी विस्तार किया। |
16. पुल्केशिन द्वितीय | कीर्तिवर्मन का पुत्र जो सन् 608 ई. में सिंहासन पर बैठा तथा सन् 642 तक राज्य किया। चालुक्य वंश का सबसे प्रतिष्ठित शासक। उसने हर्षवर्धन को हराकर उसके नर्मदा पार करने के अभियान को रोका। पल्लव राजा नरसिंह वर्मन द्वारा मारा गया। |
17. विक्रमादित्य प्रथम | पुल्केशिन द्वितीय का पुत्र। अपने पिता के हत्यारे पल्लव राजाओं को पराजित कर पुनः चालुक्य वंश स्थापित किया। |
18. विनयादित्य | सन् 681 ई. में अपने पिता विक्रमादित्य प्रथम के बाद गद्दी पर बैठा। इसने पर्शिया तथा सीलोन तक अपने सम्बन्ध स्थापित किया। |
19. विजयादित्य | विनयादित्य का पुत्र, शान्तिप्रिय शासक। |
20. विक्रमादित्य द्वितीय | विजयादित्य का पुत्र, सन् 733 से सन् 747 ई. तक राज्य किया। इन्होंने मन्दिरों तथा धार्मिक स्थलों को खूब दान दिया। अरबों के आक्रमण को रोका। |
21. नरसिंह वर्मन द्वितीया | सन् 695 से सन् 722 तक पल्लव वंश का महत्त्वपूर्ण शासक। इसने अनेक स्थापतय कला के नमूने निर्मित किए। कला सहित्य ने इनके राज्य में खूब प्रगति की। प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान दांडिन इनके राज्य में निवास करते थे। |
22. गोपाल | सन् 750 के लगभग पूर्वोंतर भारत में पाल साम्राज्य के संस्थापक। |
23. धर्म पाल | पालवंश के सबसे सामर्थवान राजा। सन् 770 ई. से सन् 810 तक राज किया। बौद्ध धर्म को मानता था। उन्होंने ‘‘नालंदा विश्वविद्यालय’’ का पुनरूत्थान कराया तथा मगध में ‘‘विक्रमशिला विश्वविद्यालय’’ स्थापित किया। इनके संबंध तिब्बत तक थे। |
24. सामन्त सेन | ‘‘सेन वंश’’ के संस्थापक। इनका शासन बंगाल तक सीमित रहा। |
25. विजय सेन | ‘‘सेन वंश’’ का सर्वाधिक सामर्थवान शासक। सामन्त सेन का पुत्र। इसने अपने रज्य का विस्तार किया तथा पूरा बंगाल अपने अधिकार में कर लिया। |
26. बल्लाल सेन | विजय सेन का पुत्र, शान्ति का पुजारी, किंतु अपने साम्राज्य की रक्षा की। यह एक विद्वान राजा था जिसने चार पुस्तकें भी लिखी जिनमें एक खगोल शास्त्र (Astronomy) से संबंधित थी। |
27. मिहिर पाल | सन् 836 ई. में कन्नौज का राजा बना। गुजरात तथा मालवा को पिने राजय में मिला लिया। पूर्व में भी उनका विजय अभियान चला। ‘‘प्रतिहार वंश’’ का एक प्रतिभाशाली शासक। |
28. महेंद्र पाल | राजा भोज का पुत्र। भोज की मृत्यु के पश्चात सन् 885 में सिंहासन पर बैठा। इसने मगध तथा बंगाल तक अपने राज्य का विस्तार किया। अनेक मंदिर तथा अन्य इमारतें बनवाई। |
29. दान्ति दुर्ग | दक्षिण भारत में चालुक्यवंश को समाप्त कर ‘‘राष्ट्रकूट वंश’’ स्थापित किया। |
30. कृष्ण तृतीय | ‘‘राष्ट्रकूट वंश’’ का सबसे अधिक प्रतापी राजा। दक्षिण भारत के सभी राजाओं को परास्त कर एक छत्र राज्य स्थापित किया। उत्तर में उज्जयनी तक अपने राज्य का विस्तार किया। कला तथा साहित्य का उपासक। धर्म के मामले में उदार। इसके समय में शैव, वैष्णव तथा जैन धर्म के अतिरिक्त मुस्लिम धर्म भी फैला। |
31. विजयालय | दक्षिण भारत में तंजौर पर अधिकार कर ‘‘चोल वंश’’ की स्थापना की। |
32. राजराजा | चोल वंश का सबसे प्रतापी राजा। इसने सन् 985 से सन् 1014 तक राज्य किया। इसने मदुरै, केरल, मालडीव, कलिंग तथा लंका के उत्तरी भाग पर अपना अधिकार जमाया। |
33. राजेंद्र प्रथम | राजराजा का पुत्र, इसने अपने पिता के राज्य में और विस्तार किया। 1014 से 1014 तक राज्य किया। बंगाल, उड़ीसा, मध्यप्रदेश तथा लंका को अपने अधिकार में कर लिया। मलाया के कुछ भाग पर भी इसका अधिकार था। |
34. पृथ्वी राज चैहान | दिल्ली तथा अजमेर का शासक। 1191 में अफगानिस्तान के शासक माहम्मद गौरी को तराई के मैदान में हराया। किंतु अगले वर्ष तराइन की दूसरी लड़ाई में उसी से हार गया। जो इसे बंदी बनाकर अपने साथ ले गया। वहां शब्द-वेधी बाण द्वारा मोहम्मद गौरी को मार डाला तथा स्वयं भी मारा गया। |
35. हरिहर राय तथा बुक्काराय | सन् 1336 ई. में विजय नगर में इन दो भाइयों ने गुरू विद्यारण्य तथा सायणाचार्य के प्रेरणा से हिंदु राज्य स्थापित किया। यह कृष्ण तथा गोदावरी नदियों में मध्य स्थित था। |
36. कृष्णदेव राय | विजय नगर साम्राज्य का सबसे अधिक सामर्थवान राजा। सन् 1509 से सन् 1529 तक राज्य किया। यह विद्वान तथा सशक्त राजा था। जिसने रायचूर और उड़ीसा को अपने अधिकार में कर लिया। इनके राज्य काल में अभूतपूर्व प्रगति हुई। संस्कृत तथा तेलगू भाषा का विद्वान था। |
37. बाबर | काबुल का शासक जिसने सन् 1526 में इब्राहीम लोदी को हराकर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की। दिल्ली, आगरा, पंजाब तथा उत्तरी बिहार तक अपने अधिकार में कर लिए। 1530 में आगरा में मृत्यु को प्राप्त हुआ। |
38. अकबर | बाबर का पोता, हुमायुँ का पुत्र। मुगल साम्राज्य को विस्तार तथा स्थिरता प्रदान की। हिंदु राजाओं से मित्रता कर, कूटनीति के सहारे उनको अपने अधिकार में कर लिया। 1556 से 1605 तक राज्य किया। फतेहपुर-सीकरी में इमारतें तथा आगरा, इलाहाबाद व लाहौर में किल बनवाए। |
39. जहाँगीर | अकबर का पुत्र, 1605 से 1127 तक राज्य किया। अपनी न्यायप्रियता तथा चित्रकला प्रेम के लिए प्रसिद्ध। शालीमार तथा निशात बाग इनके द्वारा बनवाए गए। |
40. शाहजहाँ | 1627 से 1658 तक राज्य किया। अनेक भवनों का निर्माण कराया जिनमें ताजमहल, लालकिला (दिल्ली), जामा मस्जिद (दिल्ली) प्रमुख हैं। बेटे औरंगेजेब ने जबरदस्ती उससे राज्य छीनकर, उसे बंदी बना कर कारागार में डाल दिया। मयूर सिंहासन तथा कोहनूर हीरा उनके पास था। |
41. बहादुर शाह जफर | 1837 से 1857 तक दिल्ली के अन्तिम मुगल बादशाह रहे। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में सभी भारतीयों ने इनके नेतृत्व में युद्ध किया। किंतु अंग्रेजों ने हराकर इन्हें बंदी बनाकर रंगून भेज दिया। वहां इनकी मृत्यु हुई, ये एक अच्छे शायर भी थे। |
42. महाराजा रंजीत सिंह | 1799 में लाहौर जीत कर राजा बने। अफगानिस्तान के शाह को परास्त किया तथा कोहिनूर हीरा वापस लाए। प्रथम सिख राजा जिसने पंजाब, कागड़ा, जम्मू-कश्मीर, मुल्तान तथा पेशावर तक अपना राज्य विस्तार किया। सन् 1839 में इनकी मृत्यु हो गई। |
43. शिवाजी | महाराष्ट्र में हिंदु राज्य स्थापित किया। सन् 1674 में राजा घोषित हुए। दक्षिण तक अपना राज्य विस्तार किया। औरंगजेब के साथ युद्धरत रहे। |
44. बाला जी विश्वनाथ | सन् 1713 में पेशवा साम्राज्य की स्थापना की। वे शिवाजी के पौत्र शाहूजी के प्रधान मंत्री थे किंतु शाहुजी की कमजोरी का लाभ उठा कर उनसे सत्ता अपने हाथ में ले ली। |
45. बाजी राव प्रथम | बालाजी विश्वनाथ के पुत्र। सन् 1720 से 1740 तक राज्य किया। उन्होंने अपने राज्य का विस्तार मालवा, गुजरात, बुंदेलखण्ड तथा दक्षिण के कुछ इलाकों तक किया। यह सर्वाधिक शाक्तिशाली पेशवा था |
46. बाला जी बाजीराव | बाजीराव प्रथम के पुत्र। उनका राज्य बिहार, उड़ीसा और पंजाब तक फैला हुआ था। सन् 1740 से 1761 तक राज्य किया। |
47. हैदर अली | मैसूर राज्य का शासक, 1780 में अंगे्रजों को हराया किंतु अलगे वर्ष ही पुनः लड़ाई में हार गया। 1782 में इनकी मृत्यु हो गई। |
48. टीपू सुल्तान | हैदर अली का पुत्र। 1782 में मैसूर का बादशाह बना। दो युद्धों के बाद तीसरे युद्ध में अंग्रेजों से हार गया तथा अपना राज्य गवां बैठा। अपनी स्वतंत्रता प्रियता और वीरता के कारण इन्हें शेर-ए-मैसूर कहा जाता है। |
49. रानी लक्ष्मी बाई | पति गंगाधर राव की मृत्यु के बाद झांसी की राजगद्दी पर बैठी। कोई संतान न होने के कारण एक पुत्र को गोद लिया, जिसे अंग्रेजों ने स्वीकृति नहीं दी और झांसी को अपने राज्य में मिलाने का एलान कर दिया। लक्ष्मी बाई ने वीरता के साथ उनका सामना किया और सन् 1858 में मात्र 29 वर्ष की उम्र में वीरगति को प्राप्त हुई। |
50. राजा गुहिल | सन् 566 में मेवाड़ में ‘‘गहलौत वंश’’ का शासन स्थापित किया। |
51. बप्पा रावल | राजा गुहिल के वंश में राजा कालभोज हुए जो बप्पा रावल के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्होंने भगवान एक लिंए को अपना आराध्य बनाया। उन्हीं को राजा मानकर उनके दीवान की हैसियत से शासन किया। इनका राज काल 734 ई से 753 तक माना जाता है। इन्होंने गजनी के सुलतान सलीम तथा काबुल, कंधार ईरान तथा ईराक के राजाओं को युद्ध में परास्त किया। |
52. रतनसिंह | सन् 1302 में चित्तोड़ के राजा हुए। इकनी सुंदर रानी पद्मिनी से विवाह करने की खातिर अलाउद्दीन खिलजी ने उन पर आक्रमण किया। युद्ध में जीत ना पाने पर छल से महल मे प्रवेश किया तथा राजा को बंदी बनाकर ले गया। उसे छुड़ाकर लाने के लिए गोरा व बादल नामक सेना नायकों ने युक्ति से खिलजी पर आक्रमण किया किंतु मारे गए। पद्मिनी ने 16000 महिलाओं सहित जौहर कर प्राण त्याग दिए। इस घटना को चितौड़ का प्रथम शाका कहा जाता है। |
53. हम्मीर | सन् 1326 से 1364 तक मेवाड़ के शासक रहे। मुहम्मद तुगलक ने इन पर चढाई की तो उसे परास्त कर कैद कर लिया। तीन माह तक कैद में रखकर रणथम्भोर नागौर आदि इलाके और नगद धनराशि के बदले उसे छोड़ दिया। इनके समय चित्तौड़ की अत्याधिक उन्नति हुई। |
54. महाराणा कुम्भा | सन् 1433 में मेवाड़ के शासक बने। गुजरात के सुल्तान महमूद खिलजी ने उन पर आक्रमण किया तो उसे हराकर 6 माह तक अपनी कैद में रखा। चितौड़ में इस विजय की स्मृति के रूप में विजय स्तम्भ का निर्माण कराया जो आज भी उस गौरवगाथा का बयान कर रहा है। उन्होंने गुजरात, मालवा, मांडू तथा दिल्ली कुछ भाग हस्तगत कर मेवाड़ को महाराज्य बना दिया। इसी कारण उन्हें ‘सुरताण’ अर्थात् हिंदुओं का बादशाह कहा गया है। वे राज्य कौशल के अतिरिक्त संगीत, कला तथा शिल्प के भी जानकार थे। इन्होंने अनेक किलों का निर्माण कराया जिनमें कुम्भलगढ़ व आबू पर अचलगढ़ प्रसिद्ध है। |
55. महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) | सन् 1509 में मेवाड़ की गद्दी पर बैठे। उन्होंने गुजरात के सुल्तान को हराया। दिल्ली के इब्राहीम लोदी को खतौली के युद्ध में परास्त किया, मांडू के सुल्तान को हराया तथा एक बार बाबर को भारत में प्रवेश के समय हराया। सांगा ने लड़ाइयों के दौरान एक हाथ, एक पांव और एक आंख गंवा दी। उनके शरीर में 80 घाव थे फिर भी वे घबाराए कभी नहीं। उनके विरोधियों ने उन्हें विष दे दिया जिससे 30 जनवरी 1528 को उनका देहान्त हो गया। |
56. महाराण उदय सिंह | राणा सांगा के पुत्र। सांगा की मृत्यु के समय बच्चे ही थे। अतः तत्कालीन राजा बने बनबीर ने उनका वध करना चाहा। पन्ना धाय ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान देकर उन्हें बचाया तथा कुम्भलगढ़ ले गई जहां उनका लालन-पालन हुआ। बड़े होकर उन्होंने बनबीर पर आक्रमण कर परास्त किया तथा अपना राज्य वापस ले लिया। चित्तौड़ पर हो रहे निंरतर आक्रमणों के कारण उन्होंने अरावली की पहाड़ियों में सुरक्षित स्थान पर उदयपुर नगर बसाया और वहीं से अकबर के आक्रमणों को झेलते रहे। 1572 में उनकी मृत्यु हुई। |
57. राणा प्रताप सिंह | महाराणा उदय सिंह के पुत्र। माता का नाम जयवंती बाई। जन्म 9 मई 1540 ई. में कुम्भलगढ़ में हुआ। महाराणा उदयसिंह ने अपना वारिस जगमल सिंह को बनाया किंतु राज्य के समानतों ने मिलकर उसे अपदस्थ कर प्रताप को राणा बनाया। पूरे राजस्थान में अकेला राजा जिसने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। हल्दी घाटी का प्रसिद्ध युद्ध इनके तथा अकबर के सेनापति राजा मानसिंह बीच लड़ा गया। यद्यपि इस युद्ध में राणा को बहुत हानि हुई किंतु जंगलों में जाकर पुनः सेना एकत्र की तथा लगभग सभी किले पुनः जीत लिए। 19 जनवरी 1597 को परलोक सिधारे। |
58. अमर सिंह | महाराणा प्रताप के पुत्र। प्रताप सिंह की मृत्यु पर राणा बने। उदयपुर उनकी राजधानी रही। इन्होंने मुगलों से संधि कर ली। |
59. राजसिंह | शाहजहाँ के शासन काल में मेवाड़ की गद्दी पर बैठे। उन्होंने शाहजहाँ के कई इलाके छीन लिए। शाहजहाँ के पश्चात् औरंगजेब तख्त पर बैठा और उसने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। अपने पूर्वज महाराणा प्रताप सिंह के पद चिंहों पर चलते हुए, गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करते रहे और कई बार औरंगजेब की सेना को भागने पर मजबूर किया। |
60. भोज परमार | मालवा के परमार वंश का प्रतापी शासक। सन् 1018 से 1060 तक शासन किया। इनकी राजधानी धार अथवा धारानगरी थी। चालुक्य तथा कलचुरि शासकों को परास्त किया, किंतु चंद्रदेव विद्याधर से हार गया। विद्या का पोषक, कला व विद्धानों का संरक्षक तथा स्वयं बहुमुखी प्रतिभा का धनी था। इसने संगीत, योग, व्याकरण, गणित, ज्योतिष, वास्तुकला आदि विषयों पर महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखे है। |