तरुण वीर देश के मूर्त वीर देश के
जाग जाग जाग रे मातृ भू पुकारती …2
शत्रु अपने शीश पर आज चढ़ के बोलता
शक्ति के घमण्ड में देश मान तौलता
पार्थ की समाधि को शम्भु के निवास को
देख आँख खोल तू अर्गला टटोलता
अस्थि दे कि रक्त तू, वज्र दे कि शक्ति तू
कीर्ति है खड़ी हुई आरती उतारती। मातृ भू पुकारती।।1।।
आज नेत्र तीसरा रुद्र देव का खुले
ताण्डव के तान पर काँप व्योम भू डुले
मानसर पे जो उठी बाहु शीघ्र ध्वस्त हो
बाहु-बाहु वीर की स्वाभिमान से खिले
जाग शंख फूंक रे, शूर यों न चूक रे
मातृ भूमि आज फिर है तुझे निहारती। मातृ भू पुकारती।।2।।
आज हाथ रिक्त क्यों जन-जन विक्षिप्त क्यों
शस्त्रा हाथ में लिये करके तिरछी आज भौं
देश-लाज के लिए रण के साज के लिए
समय आज आ गया तू खड़ा है मौन क्यों
करो सिंह गर्जना, शत्रु से है निबटना
जय निनाद बोल रे है अजेय भारती। मातृ भू पुकारती।। 3।।