Rashtriya Chetna Ke Swar - राष्ट्रीय चेतना के स्वर

लक्ष्य तक पहुँचे बिना


लक्ष्य तक पहुँचे बिना, पथ में पथिक विश्राम कैसा

लक्ष्य है अति दूर दुर्गम मार्ग भी हम जानते हैं,
किन्तु पथ के कंटकों को हम सुमन ही मानते हैं,
जब प्रगति का नाम जीवन, यह अकाल विराम कैसा ।। 1।।

धनुष से जो छूटता है बाण कब मग में ठहरता,
देखते ही देखते वह लक्ष्य का ही वेध करता,
लक्ष्य प्रेरित बाण हैं हम, ठहरने का काम कैसा ।। 2।।

बस वही है पथिक जो पथ पर निरंतर अग्रसर हो,
हो सदा गतिशील जिसका लक्ष्य प्रतिक्षण निकटतर हो,
हार बैठे जो डगर में पथिक उसका नाम कैसा ।। 3।।

आज जो अति निकट है देख लो वह लक्ष्य अपना,
पग बढ़ाते ही चलो बस शीघ्र हो सत्य सपना,
धर्म-पथ के पथिक को फिर  देव-दक्षिण वाम कैसा ।। 4।।