Rashtriya Chetna Ke Swar - राष्ट्रीय चेतना के स्वर

देश उठेगा


देश उठेगा अपने पैरों निज गौरव के भान से।
स्नेह भरा विश्वास जगाकर जीयें सुख सम्मान से।।
देश उठेगा                            ।।ध्रु-।।

परावलम्बी देश जगत में, कभी न यश पा सकता है।
मृग तृष्णा में मत भटको, छीना सब कुछ जा सकता है।।
मायावी संसार चक्र में कदम बढ़ाओ ध्यान से।
अपने साधन नहीं बढ़ेंगे औरों के गुणगान से—- ।।1।।

इसी देश में आदिकाल से अन्न, रत्न भण्डार रहा।
सारे जग को दृष्टि देता, परम ज्ञान आगार रहा।।
आलोकित अपने वैभव से, अपने ही विज्ञान से।
विविध विधाएँ फैली भू पर अपने हिन्दूस्थान से— ।।2।।

अथक किया था श्रम अनगिन जीवन अर्पित निर्माण में।
मर्यादित उपभोग हमारा, पवित्रता हर प्राण में।।
परिपूरक परिपूरण सृष्टि, चलती ईश विधान से।
अपनी नव रचनाएँ होंगी, अपनी ही पहचान से—- ।।3।।

आज देश की प्रज्ञा भटकी, अपनो से हम टूट रहे।
क्षुद्र भावना स्वार्थ जगा है, श्रेष्ठ तत्व सब छूटे रहे।।
धारा ‘स्व’ की पुष्ट करेंगे समरस अमृत पान से।
         कर संकल्प गरज कर बोले, भारत स्वाभिमन से—-।।4।।