विवाह भारतीय जीवन पद्धति में
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प्रमुख संस्कारों में से एक महत्त्वपूर्ण संस्कार है। परम्परा के
अनुसार नया जीवन प्रारम्भ करने हेतु कन्या को गहने,
बर्तन,
बिस्तर,
कपडे़ आदि दिये जाते हैं जिसे आम भाषा में दहेज/दाज कहते हैं। वर
पक्ष के लोग वधु के लिए गहने अथवा कपड़े बनवाते हैं जिसे वरी कहते
हैं। इस दाज वरी के पीछे हमारी संस्कृति की मूल भावना है-कन्या दान
तथा उसके नये जीवन हेतु शुभकामनायें तथा आशीर्वाद।
धीरे-धीरे समाज में स्वेच्छा से कन्या को दहेज दिये जाने की रीति
में अभूतपूर्व बदलाव आया और वर पक्ष वालों ने विवाह हेतु मांगे
रखनी शुरू कर दीं तथा नकद पैसा मांगने की प्रथा चल पड़ी एवं
बारातियों की संख्या बढ़ने लगी तथा स्कूटर पिफ़्रज कार आदि दहेज में
देने का प्रचलन बढ़ा। कुल मिलाकर गत
40-50
वर्षों में कन्याओं का विवाह आम आदमी की पहुंच से बाहर होने लगा
है।
प्रकल्प का रूप/उद्देश्य:
समाज की इस विस्पफ़ोटक स्थिति को देखते हुए,
भारत विकास
परिषद् ने राष्ट्रीय स्तर पर सामूहिक सरल विवाह प्रकल्प प्रारम्भ
किया है। समाज के निर्धन परिवारों की कन्याओं का विवाह सरल हो एवं
दुल्हन ही दहेज है,
यही मूल भावना है इस प्रकल्प की। सम्पन्न परिवारों में भी सरल
विवाह का संदेश भेजा जाए जिससे दहेज का लेन-देन कम हो सके।
परिषद् की यह भी सोच है कि भारतीय जीवन में शुचिता हो,
परिवार
संस्कारित हों,
बालक/बालिकाएं
चरित्रवान एवं देश भक्त बनें एवं अच्छे नागरिक बन कर भारत का विकास
करें। विवाह संबंधी प्रक्रिया संस्कारित हो जिसमें मांग व लेन-देन
न्यूनतम हो। वर-वधु पक्ष के सम्बन्धी बाराती एक ही स्थान पर
रस्में-रीतियां पूरी करें,
उसी स्थान पर सामूहिक भोज हो। इस प्रकार के विवाह दिन में किसी
धर्मशाला अथवा किसी पूजा स्थल के प्रांगण में अथवा सामुदायिक
केन्द्र में हों।
सामूहिक विवाहः
भारत के राजस्थान प्रांत में सामूहिक विवाहों की प्राचीन प्रथा है
और इस प्रकार के विवाह अक्षय तृतीया (एक ऐसा दिन है जिसमें विवाह
का मूहूर्त देखने की कोई आवश्यकता नहीं रहती।) को कराये जाते हैं।
सामूहिक विवाह सरलीकरण का यह एक अच्छा तरीका है। इस प्रकार के
विवाह युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की विधवाओं के भी देखने में आते
हैं। इस प्रकार के विवाहों में समाज के लोग कन्यादान के रूप में
नकद राशि,
कपडे़ आदि देते
हैं। पंजाब प्रांत के आर्य समाज तथा सनातन धर्म मन्दिरों में ऐसे
विवाह बहुधा देखने को मिलते हैं। भारत विकास परिषद् के पंजाब,
दिल्ली,
उत्तर प्रदेश,
म-प्र-,
हरियाणा तथा महाराष्ट्र कोस्टल प्रान्तों में कुल मिलाकर गत वर्ष
निर्धन परिवारों के पुत्र-पुत्रियों के बड़ी संख्या में विवाह
सम्पन्न कराये गये हैं।
प्रकल्प हेतु दिशा निर्देश
1.
सामूहिक सरल
विवाह में अधिक से अधिक जोड़ों के विवाह की योजना बनायें। नगर में
भारत
विकास परिषद् के बैनर के साथ सामूहिक बारात निकालें ताकि इसका खूब
प्रचार हो। बारात में बैंड,
जनता की
भागीदारी परिषद् के बैनर,
वर यात्र मार्ग
पर स्वागत आदि हों। इससे परिषद् की
पहचान बनेगी।
2.
विवाह हेतु
प्रचार का कार्य करें। जरूरतमंद परिवारों को प्रकल्प की जानकारी
भेजें। पूजा स्थलों पर पत्रक बांटे अथवा बड़े-बडे़ सूचना पट्ट
लगवायें। समाचार पत्रें तथा टी-वी- चैनलों के माध्यम से
प्रचार करें बड़े-बड़े होर्डिंग,
दो मास पहले से लगवायें।
3.
नियमानुसार वर
की आयु 21
वर्ष तथा वधु की आयु 18
वर्ष होना आवश्यक है।
4.
विवाह हेतु वर
तथा वधु युगलों का चयन कर प्रोत्साहित करें कि विवाह हेतु आवश्यक
समान
भोज,
बैंड तथा अन्य व्यय भारत विकास परिषद् तथा इसके सदस्य वहन करेंगे।
5.
स्थानीय नगर
पालिका,
धर्मार्थ ट्रस्टों तथा अन्य सामाजिक संस्थाओं का सहयोग लें।
6.
महिलाओं की भागीदारी अवश्य सुनिश्चित करें।
7.
विधवा बहनों की
कन्याओं के विवाह को इस सामूहिक सरल विवाह प्रकल्प में अवश्य
सम्मिलित
करें।
8.
घर-गृहस्थी का
आवश्यक सामान,
कपडे़,
कुछ हल्के गहने
इत्यादि की भी व्यवस्था करने का प्रयास
करें। केवल
आवश्यक सामग्री ही दें। किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा न हो। अधिक
लागत वाली
वस्तुओं को देने से परहेज करें। एक भोज अवश्य दें।
9.
इस योजना का
प्रचार कर अधिक से अधिक धन,
सामग्री आदि
हेतु जनता का सहयोग लें तथा
उन्हें महत्त्व दें।
10.
नगर की जनता भी इस प्रकल्प में भागीदार बन सके ऐसा प्रबन्ध करें।
11.
पंजीकरण हेतु
एक शपथ पत्र बनायें जिसमें वर-वधु का पूरा विवरण,
फोटो,
जन्म तिथि,
माता पिता
के हस्ताक्षर आदि अवश्य हों।
कार्य योजना
1.
वर्ष में दो बार इस प्रकार के विवाह सम्पन्न कराने की योजना
बनायें।
2.
अक्षय तृतीया
(मई मास) तथा बसन्त पंचमी पफ़रवरी मास (माघ शुक्ल पंचमी) में जो
स्वयं
सिद्ध मुहूर्त हैं तथा नवरात्रें अथवा अन्य प्रमुख त्यौहारों पर
सुविधानुसार आयोजन करें।
3.
इस प्रकल्प की
सफलता अधिकतम जन सम्पर्क तथा प्रचार पर निर्भर है अतः इन दोनों में
संकोच
न करें। युगलों का पंजीकरण 3-4
मास पूर्व प्रारम्भ करें।
युगलों की संख्या उतनी ही रखी जाये,
जिसका प्रबन्ध उचित रूप से हो सके।
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